सूचना पाने के संदर्भ में कितनी कारगर हैं सोशल साइट्स?
दो पुरानी कहावतें हैं…पहला कि दुनिया को जिस नज़र से देखोगे ठीक वैसी ही दिखेगी, और दुसरा… वस्तुओं को जिस तरह प्रयोग करोगे ठीक वैसी ही फल देगा, प्रकृति का यही नियम भी है। ये सारी बातें सोशल मीडिया के संदर्भ में भी लागू होती है।
सोशल मीडिया या सामाजिक मीडिया (हिन्दी अर्थ), ये शब्द आजकल पुरे विश्व में काफी प्रचलन में है, और हो भी क्यूँ ना ? दुनिया की 50% जनसंख्या 30 के नीचे है, और धरा की सबसे अधिक युवाशक्ति भारतवर्ष में ही तो निवास करती है, जो ईन साईट्स में काफी दिलचस्पी रखती है।
सोशल मीडिया (सामाजिक मीडिया) अगर इसके शाब्दिक अर्थ पर गौर करें तो अपनें आप में बहुत कुछ बयां करता है¸ क्योंकि ये सोशल साइट्स कोई और नहीं बल्कि एक लोकतांत्रिक विचारधारा की तरह ही समाज का,समाज के लिये और समाज के व्दारा जन्में और पले बढ़े होते हैं,जिनके यूजर्स हम,आप और समाज के हर तबके, हर उम्र के लोग होते हैं, और समाज एक या एक से अधिक लोगों के समुदाय को ही तो कहते हैं जिसमें मानव मानवीय क्रियाकलाप करते है व उन मानवीय क्रियाकलापों में आचरण, सामाजिक सुरक्षा वाद-विवाद,चिंतन-मनन,सोच-विचार और निर्वाह आदि की क्रियाएं भी सम्मिलित होती है। जिसकी झलक हमें इन साइट्स के जरिये बखुबी मिलता है…
जब से हमनें अपनी संस्कृति से दुर होनें की कवायद की हैं हमें अपनी(हिन्दी/भारतीय) और विशवव्यापी भाषाओं में विभेद थोड़ा कम लगनें लगा है, या यूँ कहें की उपर्युक्त भाषाओं में विच्छेद करना थोडा मुश्किल सा प्रतीत हुआ है। जभी तो हमारे भारतीय देहात के महासागर कहे जानें वाले गाँवों के करोड़ो बसिंदों को भी ये शब्द थोड़ा सामान्य सा जरुत प्रतीत हुआ है।
हम बात “सोशल मीडिया और शिक्षा” की कर रहे हैं, लेकिन शिक्षा क्या है? मेरी नजर में शिक्षा हमें अपनें जीवन को सुचारू रुप से चलानें की कला सिखाती है,समाज में अपनें अस्तित्व को बरकरार रखनें का ढंग सिखाती है,जीवन के इस टेढ़ी डगर में भी सीधी राह दिखाती है। हमें शिक्षित करती है, सूचित करती है, अनुप्राणित करती है, प्रेरित करती है, बुरा करनें का फल भी चखाती है, हमें हंसाती है,रुलाती है,हमारे अंदर के उर्जा को जागृत करती है,बुरे वक्त में भी सीधे ख़ड़े रहनें की हिम्मत दिलाती है इत्यादि।
कमोबेश सोशल साइट्स भी यही करती हैं क्योंकि ये सोशल साइट्स कोई और नहीं बल्कि एक लोकतांत्रिक विचारधारा की तरह ही समाज का,समाज के लिये और समाज के व्दारा जन्में और पले बढ़े होते हैं,जिनके यूजर्स कोई और नहीं बल्कि हम आप और समाज के हर तबके, हर उम्र के लोग होते हैं। हम एक ‘इनफोरमेटिव ऐरा’ (सुचना काल) में हैं जहां, कहीं भी कभी भी सुचनाओं का आदान प्रदान संभव है।
हम सब Marshall McLuhan के “ग्लोबल विलेज” वाली परिकल्पना को यथार्थ में बदल रहे हैं, आज पुरा विश्व लगभग इन्टरनेट के आभासी दुनिया का उपभोक्ता है, जो सुचनाओं को सेकेँण्डों में प्राप्त करनें में सक्षम है। आज लोगों की मुलाकातें,वाद-विवाद चौक-चौराहों गली नुक्कड़ के बजाये फेसबुक, ट्वीटर जैसी अन्य सोशल साइट्स पर हो रही हैं, जिसके कुछ दुरगामी दुषपरिणाम भी हैं, लेकिन इनकी अच्छाइयों के आगे कुंद सी प्रतीत होती हैं।
सूचना ही ज्ञान है और ज्ञान ही सूचना, अर्थात शिक्षा के संदर्भ में सुचना का महत्व सर्वोपरि रहा है और इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लिये अलग-अलग सूचनायें होती हैं और हो सकती हैं। जरुरी है कि हम ईन साईट्स का प्रयोग अपने क्षेत्र की सूचनाओं के लिये ज्यादा से ज्यादा करें।
दुनिया की 50% जनसंख्या 30 के नीचे है जो ईन साईट्स में काफी दिलचस्पी रखती है,और जिनकी अपनी एक वर्चुअल समुह है जिनसे वे अपने क्षेत्र की सूचनाओं का आदान-प्रदान बड़ी आसानीं से कर रहे हैं। आज लगभग हर पढे-लिखे लोगों, राजनेताओं, फिल्मीं हस्तियों, उद्योगपतियों, पत्रकारों, शिक्षकों, उद्यमियों ,वरिष्ट नागरिकों, विद्यार्थीओं, इत्यादी का सोशल अकाउंट है, अपना सोशल ग्रुप है, जिनपे वे अपनें क्षेत्र से संबंधित भावों, विचारों, सुचनाओं जानकारियों का आदान प्रदान घर बैठे बड़ी आसानी से कर रहे हैं, जिनकी लिखित भावों,सुचनाओं जानकारियों,विचारों को हम आसानी से पढ़ सकते हैं, उन्हें फॉलो कर सकते हैं, और अपनें क्षेत्र की सुचनाओं को आसानीं से पा सकते हैं। अर्थात ये साईट्स हमें विश्व की अनेकानेक मानव हस्तियों सहित अपनें क्षेत्र की हस्तियों से घर बैठे संपर्क साधना मुमकिन बना दिया है जो मानव सभ्यता के इतिहास में पहलें संभव नहीं था।
एक आंकड़े के अनुसार,69% अभीभावक अपनें बच्चों के फेसबुक फ्रेंड हैं, हर सेकेंड 4 नये यूजरर्स लिंक्डइन से जुड़ रहे हैं। जहाँ 1.19 बिलियन संख्याबल फेसबुक को चीन, अमेरिका और भारत के बाद तिसरे देश के रुप में सामनें लाती है, अंतरजाल के मायाजाल में जहां सोशल साइट्स इन्टरनेट पर सबसे पहली गतिविधि बन गई हैं,वहीं यूट्यूब जैसी “चलचित्र सर्च ईन्जन” को दुसरा सबसे बड़ा सर्च सर्च ईन्जन का खिताब हासिल है।
मीडिया मिडियम का बहुवचन है,और विश्व के लगभग सारे मीडिया संगठनों का काम कमोबेश उपर्क्तयु ही है। सोशल मीडिया भी ऩई मीडिया का ही एक रुप है। ये जवां है, पुराना है,रहस्यमयी है, तरल(अस्थिर) है, क्रान्तिकारी है, कुंठित है फिर भी लाभदायी है।
हर सिक्के के दो पहलु होते हैं और प्रकृति का एक नियम है कि अमृत भी ज्यादा विष का काम करती है, और बेश्क शराब बुरी चीज है लेकिन वो भी एक सीमा तक लेनें में दवा का काम कर सकती है। सचमुच ये बातें सोशल साईट्स पर भी लागू होती हैं।अगर हम समय सीमा को ध्यान में रखकर इन साइट्स का प्रयोग करें तो ये हमारे लिये काफी लाभदायक और सार्थक साबित होंगे अन्यथा उतनें ही हानिकारक और निरर्थक भी।