पुरे झारखण्ड में दिखा बंद का असर, गया-धनबाद रुट पर नक्सलियों ने उडाई पटरी, जानें कहां क्या पड़ा असर
झारखण्ड बंद के दौरान नक्सलियों ने कई जगहों पर जम कर उत्पात मचाया है। बंद के दौरान गिरिडीह जिला नक्सलियों के निशाने पर रहा। माओवादियों ने धनबाद में रेल की पटरी उड़ाई और गिरिडीह में कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया।
बंद का सबसे व्यापक असर लोहरदगा, सिमडेगा, खूंटी, गुमला, पलामू, गढ़वा और लातेहार में देखा गया. बंद के कारण आज सुबह से ही मुख्य पथ पर बड़े व छोटे वाहनों का परिचालन लगभग बंद रहा। शहरी क्षेत्र के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी वाहनों का परिचालन लगभग पुरी तरह से बंद रहा। ग्रामीण क्षेत्रों की सभी दुकानें आज अहले सुबह से ही बंद रहीं। पूर्व घोषित बंद के कारण यात्री भी अपने घरों से नहीं निकले। आम दिनों में गुलजार रहने वाला बस स्टैंड और ऩेशनल हाईवे पर सन्नाटा पसरा रह। लम्बी दुरी की बसों के परिचालन बंद होने के कारण यात्रिओं को काफी दिक्क्तों का सामना करना पड़ा, वही ट्रेन की पटरी उड़ाए जाने से रेल यात्री भी हलकान रहे।
बंद का असर सरकारी कार्यालयों में भी देखने को मिला. अन्य दिनों की तुलना में सरकारी कार्यालयों में ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले ग्रामीणों की उपस्थिति बहुत ही कम देखने को मिली।
रेल नक्सलिओं के सॉफ्ट टारगेट में रहा, इस बार भी बंद के दौरान नक्सलियों ने धनबाद रेल मंडल के अंतर्गत चिचाकी-कर्माबांध स्टेशन के बीच पोल नम्बर 333 डाउन ट्रैक के पास पटरी को विस्फोट से उड़ा दिया।इस विस्फोट में हटिया-पटना एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त होने से बाल-बाल बची। घटना रात लगभग 12.40 की है, जिसमें हावड़ा से आ रही दून एक्सप्रेस भी दुर्घटनाग्रस्त होने से बची, इसके साथ ही दर्जनों ट्रेनों पर इसका असर पड़ा। कई ट्रेनें धण्टों लेट हो गईं।
वहीं गिरिडीह के धावटांड जंगल मे नक्सलियों ने एक बोलेरो को फूंक दिया, ये घटना सुबह लगभग 3 बजे की है. घटना के बाद तीन घंटे तक सड़क जाम रहा, जबकि तीसरी घटना गिरिडीह के बिरनी इलाके की है। यहां पर लगभग 50 की संख्या में आये नक्सलियों ने सड़क निर्माण में लगी पोकलेन समेत तीन मशीन को जला दिया।
वहीं भाकपा माओवादियों नें झारखण्ड की उपराजधानी दुमका के काठीकुंड और गोपीकांदर इलाके में दर्जनों स्थानों पर पोस्टर बाजी की है। इन पोस्टरों में CNT-SPT एक्ट को लेकर प्रतिवाद तेज करने, आदिवासीयों के ऊपर पुलिस-प्रशासन की बर्बरता का विरोध करने, पुलिस राज को ध्वस्त करने व नक्सलबाड़ी विद्रोह के अर्ध-शताब्दी को सफल बनाने आह्वान किया गया है।
झारखण्ड चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स के महासचिव रंजीत टिबड़ेवाल का मानना है कि नक्सलियों के बंद पर रोक नहीं लगी तो नए उद्योग का राज्य में लगना मुश्किल होगा।
झारखण्ड में नक्सलियों और उग्रवादियों की बंदी में राज्य में व्यवसाय को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। इस वर्ष अब तक 18 बंदी बुलाई गयी जिससे अब तक एक अरब 80 करोड़ रुपयों के नुकसान का अनुमान है। दरशल राज्य में नक्सल बंदी का असर यूँ तो पुरे जनमानस पर पड़ता है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा नुकसान राज्य के व्यवसाय जगत पर पड़ता है, इसका असर बड़े व्यवसायियों से लेकर छोटे,मंझोले व रेहड़ी–पटरी वाले लोगों पर भी पड़ता है।
झारखण्ड पुलिस महकमा नक्सल बंद के दौरान मुस्तैदी जरूर है लेकिन बंद को लेकर अब तक लोगों के जेहन से भय नहीं निकल पाया है। पुलिस का मानना है कि नक्सली अपने अंत को देखते हुए बंद बुलाते है।
बहरहाल राज्य में नक्सल बंद का भयावह परिणाम पिछचले कई सालों से लगातार दिखता रहा है। लेकिन पुख्ता सुरक्षा इंतजाम के बावजूद बंद पर लगाम नहीं लगा पाना वर्तमान में राज्य सरकार की सबसे बड़ी समस्या है।