Jharkhand Reporter के सवाल: ‘चुंबन प्रतियोगिता’ से कितने आधुनिक बनेंगे झारखंड के आदिवासी?

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राज्य के पिछड़े जिलों में एक पाकुड़ के डुमरिया में कल सिद्धो-कान्हू मेले का आयोजन किया गया था।  जिसमें जिले के पहाड़िया आदिवासी समाज के लोगों ने हिस्सा लिया।

इस प्रतियोगिता में दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश ‘थाईलैंड’ के उस परंपरा को भी शामिल किया गया था, जिसमें वाहां के लोग अपनी प्रमिकाओं को अलिंगन करते हुये एक दुसरे के चुमते हैं। विदित हो कि मेले में इस नये प्रयोग के आयोजनकर्ता जिले के लिट्टीपाड़ा से झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के विधायक साइमन मरांडी थे।

वेबसाईट न्यूजकोड की खबर के मुताबिक़ प्रतियोगिता में स्थानीय आदिवासी जोड़े एक-दूसरे का आलिंगन कर चुमते हुये नज़र आ रहे हैं, साथ ही वाहां अच्छी तादाद में दर्शकों की भी भीड़ नज़र आ रही है।  

विदित हो कि भारत में मेलों की बड़ी प्राचीन परंपरा रही है, मेले भारतीय समाज में लोगों के मनोरंजन के केन्द्र होते हैं, जहां लोग पुरे परिवार व हर उम्र के लोगों के साथ शिरकत करते नज़र आते हैं।

चूंकि इस मेले में पहली बार इस तरह के ‘चुम्बन प्रतियोगिता’ का आयोजन किया गया, इसलिये ये लोगों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं। आयोजकों व्दारा कहा गया है कि स्थानीय आदिवासी अब आधुनिक तरीके से जीना चाहते हैं… तो अब सवाल ये उठता है कि-

1- क्या खुले में एक दुसरे को चुमना ही एकमात्र आधुनिकता की कसौटी है??

2- क्या आदिवासी समाज के लोगों का पारंपरिक नृत्य व उनके सांस्कृतिक नाच-गान व तौर-तरीके सभी पिछडे़पन व गैर आधुनिकता की निशानी है? 

3- जिले के पहाड़िया समाज के लोग उपभोक्ततावादी चीजों को अभी उस तरीके से प्रयोग में नहीं ला रहे तो क्या वो आधुनिकता की दौड़ में पिछड़े माने जायेंगे ??  

4- क्या स्थानीय आदिवासीयों की संस्कृति उनके नाच-गान व पारंपरिक तौर तरीके गैर-आधुनिक मान लिये गये हैं?

सवाल और भी हैं जिनका जवाब राज्य की राजनितिक पार्टियों व राजनेताओं को शायद देना चाहिये, जिन्हें ये लगता है कि अब तक अपनीं संस्कृति को सहेज कर रखने वाले राज्य के आदिवासी अब दुसरे देशों के तौर-तरीके व उनकी जीवन शैली अपना लेगें तो उनका सारा पिछड़ापन खुद-ब खुद दूर हो जायेगा!!   

JharkhandReporter.Com के लिये Hariom Rai.

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