झारखंड भ्रमण: एक झारखंडी का यात्रा वृतांत
दो बहने एक ही थाली में खाना खा रही हैं, एक बहन के हाथ में लाठी है जो संभवतः यह बता रहा है कि बकरी आदि चरा कर वह दोपहर में खाने के लिय ही लौटी है।
जिंदगी आसान नही…संघर्ष का नाम ही जिन्दगी है, ये लेख पाकुड़ ज़िले के एक गांव भ्रमण के क्रम में वहां की वास्तविकता को दर्शाता है।
दोपहर का समय है…धुप बहुत कड़ी है…सड़क किनारे एक छोटा सा मिटटी का घर दिख रहा है घर में एक खाट लगा हुआ है…कुछ बकरी भी दिख रहे हैं।
दो बहने एक ही थाली में खाना खा रही हैं, एक बहन के हाथ में लाठी है जो संभवतः यह बता रहा है कि बकरी आदि चरा कर वह दोपहर में खाने के लिय ही लौटी है।
आपके और हमारे बच्चे शायद एक ही थाली में नही खाए लेकिन गरीब के बच्चे एक ही थाली में खाने के लिए तैयार हैं। भले ही एक दृष्टिकोण से यह गरीबी को दर्शाता हो लेकिन दुसरे दृष्टिकोण से उस गरीबी से अधिक उन गरीब बच्चो के बीच प्रेम को भी दर्शाता है।
लेखक सच्चिदानंद सोरेन पेशे से इंजीनियर हैं और आजकल अपने राज्य को करीब से देखने समझने के क्रम में झारखंड भ्रमण पर हैं।