जानें क्या है 1932 का खतियान और मचता है इसपर बवाल !
1932 के खतियान काे आधार बनाने का मतलब यह है कि उस समय जिन लाेगाें का नाम खतियान में था, वे और उनके वंशज ही स्थानीय कहलाएंगे। उस समय जिनके पास जमीन थी, उसकी हजाराें बार खरीद-बिक्री हाे चुकी है। उदाहरण के ताैर पर 1932 में अगर रांची जिले में 10 हजार रैयताें थे ताे आज उनकी संख्या एक लाख पार कर गई। अब ताे सरकार के पास भी यह आंकड़ा नहीं है कि 1932 में जाे जमीन थी, उसके कितने टुकड़े हाे चुके हैं।
1913 से 1918 के बीच हुई सर्वे
कोल्हान क्षेत्र के लिए 1913 से 1918 के बीच काफी महत्वपूर्ण रहा है। इसी दौरान लैंड सर्वे का कार्य किया गया और इसके बाद मुंडा और मानकी को खेवट में विशेष स्थान मिला। आदिवासियों का जंगल पर हक इसी सर्वे के बाद दिया गया। देश आजाद हुआ। 1950 में बिहार लैंड रिफार्म एक्ट आया। इसको लेकर आदिवासियों ने प्रदर्शन किया। इसी साल 1954 में एक बार इसमें संशोधन किया गया और मुंडारी खूंटकट्टीदारी को इसमें छूट मिल गई।
झारखंड में 1932 के खतियान काे स्थानीय हाेने का आधार बनाए जाने के झामुमाे सुप्रीमाे शिबू साेरेन के बयान के बाद एक नया विवाद खड़ा हाे गया है। अगर ऐसा हुआ ताे रांची, धनबाद, जमशेदपुर और बाेकाराे जैसे बड़े शहराें में रहने वाले 75 फीसदी लाेग स्थानीय हाेने की शर्त पूरी नहीं कर पाएंगे और वे बाहरी हाे जाएंगे। इन शहराें में लाेग राेजी-राेजगार के लिए आए और बसते चले गए, उस समय धनबाद का ताे अस्तित्व ही नहीं था। गुरूजी ने कहा था कि झारखंड सरकार माैजूदा स्थानीय नीति में संशाेधन करेगी। 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति बनाई जाएगी
2014 में परिभाषित हुई थी स्थानीयता
स्थानीयता काे लेकर विवाद 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के समय शुरू हुआ, जब उन्हाेंने 1932 के खतियान काे अाधार बनाने की काेशिश की।
अर्जुन मुंडा के मुख्यमंत्रित्व काल में सुदेश महताे की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनी, लेकिन इसकी रिपाेर्ट पर कुछ नहीं हाे पाया।
2014 में मुख्यमंत्री रघुवर दस ने पहली बार स्थानीय नीति काे परिभाषित किया। इसमें 1985 से झारखंड में रहने वालाें काे स्थानीय माना, अगर वे जमीन खरीदकर यहां बस गए हाें या उनके बच्चाें ने पहली से मैट्रिक तक की पढ़ाई झारखंड में की हाे। या फिर राज्य के केंद्र सरकार के कर्मचारी हाें।
सीएम बाेले- गुरुजी ने किस संदर्भ में कहा, समझने के बाद बाेलेंगे मुख्यमंत्री हेमंत साेरेन ने कहा कि गुरुजी राज्य के सम्मानीय नेता हैं। गार्जियन भी हैं। उन्हाेंने क्या कहा है, किस संदर्भ में कहा है, यह समझने के बाद ही कुछ कहेंगे।
भाजपा बाेली-पहले हेमंत बताएं कि वह गुरुजी के साथ हैं
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा- पहल मुख्यमंत्री हेमंत साेरेन अपने स्टैंड क्लीयर करें कि वह राज्य के सवर्मान्य नेता के बयान से सहमत हैं या नहीं। कांग्रेस और राजद काे भी स्पष्ट करना चाहिए कि वह क्या चाहता है। जब सरकार का स्टैंड क्लीयर हाे जाएगा, तभी भाजपा कुछ बाेलने की स्थिति में हाेगी। क्याेंकि गठबंधन के दलाें की ही इस मुद्दे पर एक राय नहीं है।
गुरुजी ने फिर दाेहराया-सरकार जल्द 1932 का कट ऑफ डेट लागू करेगी
झामुमाे सुप्रीमाे शिबू साेरेन ने बुधवार काे फिर दाेहराया कि तत्कालीन रघुवर सरकार द्वारा 1985 की डेट से स्थानीय नीति परिभाषित करना गलत है। यह आदिवासी-मूलवासियाें के अधिकाराें का हनन है। हमारी सरकार इसमें अविलंब बदलाव करेगी। खिजुरिया में अपने आवास पर उन्हाेंने कहा कि आदिवासियाें-मूलवासियाें के हक के लिए 1932 का कट ऑफ डेट लागू की जाएगी। इसके बाद यहां के जंगल-झाड़ में रहने वाले खतियानी रैयत वाले आदिवासी-मूलवासियाें काे पलायन नहीं करना पड़ेगा। मसानजाेर डैम पर उन्हाेंने कहा कि बंगाल सरकार इस पर जबरन कब्जा किए हुए है। डैम हमारे क्षेत्र में है और बिजली-पानी का लाभ बंगाल उठा रहा है। सरकार इस पर भी विचार करेगी।
भाषा विवाद ने तेज की जंग
झारखंड में जिस तरह से भाषा विवाद गहराते जा रहा है उससे कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। वहीं, इधर 1932 के खतियान और स्थानीय नीति की मांग भी तेज हो गई है। प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग की ओर से 24 दिसंबर को भाषा को लेकर एक लिस्ट जारी की गई।
झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग की ओर से मैट्रिक और इंटर स्तर पर होने वाली प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए जनजातीय के साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं को भी जगह दी गई। इस मामले में भाजपा नेता रवींद्र राय पर हमला भी हो चुका है। इस तरह से लगातार विवाद बढ़ते जा रहा है।