झारखंड में शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक आंदोलन का रूप लेता ‘रात्रि पाठशाला’

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रांची: अबतक आपने सरकारी या निजी स्कूल के बारे में सुना और देखा होगा लेकिन आज हम आपको झारखंड में संचालित ऐसे स्कूलों से परिचय कराने जा रहे हैं जो सामाजिक सहयोग से संचालित होते हैं। जिसकी शुरुआत की है झारखंड के पूर्व IPS Arun Oraon (आईपीएस डॉ अरुण उरांव ने)।  वर्ष 2014 में शुरू हुई इन स्कूलों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और ये तमाम स्कूल रात्रि पाठशाला के नाम से संचालित हो रहे हैं।

भारत में अक्सर देखा जाता है कि सरकारी सेवाओं से रिटायर होकर ज्यादातर अधिकारी अपने निजी जीवन को अधितकम समय देने लग जाते हैं लेकिन भारतीय पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त होकर डॉ अरुण उरांव ने इसके उलट शिक्षा को सामाजिक बदलाव का हथियार बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2014 में ‘कार्तिक उरांव रात्रि पाठशाला’ की बुनियाद रखी और इस अभियान को आगे बढ़ाने में लग गये।

पिछड़े ग्रामीण इलाके में गरीब बच्चों को, गांव के ही रहने वाले कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा निःशुल्क व उत्तम शिक्षा देने का प्रबंध अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के माध्यम से किया गया। परिणामतः आज रांची, लोहरदगा एवं गुमला जिले में इस पाठशाला की संख्या बढ़कर 100 के करीब हो गयी है जिसमे 300 के क़रीब शिक्षक लगभग चार हजार बच्चों को शिक्षा देते हुए उनकी जिंदगी संवार रहे हैं।


गांव के सामुदायिक भवन या अपने आवास में ही इन बच्चों को शाम 5.00 से 7.00 बजे तक पढ़ाया जाता है जिसमें अंग्रेजी, विज्ञान एवं गणित विषयों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

शिक्षा, खेल के साथ बुजर्गों से पारंपरिक ज्ञान व सामुहिकता सीख रहे बच्चे

‘Jharkhand Reporter’ से बात करते हुये इस अभियान के संचालक पूर्व आईपीएस अरुण उराँव ने बताया कि पुलिस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद वर्ष 2014 में जब वे रांची आये तो देखा कि स्कूलों में ठीक ढ़ंग से शिक्षा न पाने की वजह से गरीबों के ज्यादातर बच्चे इंटरमीडिएट व स्नातक में  अच्छा नहीं कर पा रहे हैं ऐसे में उन्होंने इस नायाब पाठशाला की शुरुआत की जिसमें पहली से लेकर इंटरमीडिएट व स्नातक तक के बच्चों की स्कूल की पढ़ाई के अलावा स्थानीय बुजुर्गों व शिक्षकों द्वारा उनकी बुनियाद मज़बूत करने के उद्देश्य से रात्रि पाठशाला किया गया। श्री उराँव ने बताया कि इसकी प्रेरणा उन्हें आदिवासी समाज के बड़े नेता स्वर्गीय कार्तिक उरांव से मिली जिन्होंने गरीबी में पलकर स्थानीय स्तर पर शिक्षित हो समाज व राज्य का प्रतिनिधित्व देश-विदेश तक किया।

श्री उराँव आगे कहते हैं ” गांव के समाज में आये बदलाव की वज़ह से इन दिनों गांवो में चौपाल या सामुहिक बैठक की प्रथा बंद होती जा रही थी, जहां बच्चे अपने बुजुर्गों के अर्जित ज्ञान व परंपरा को जान सकें ऐसे में ये रात्रि पाठशाला झारखंड के गांवों के पारंपरिक अखरा (चौपाल) एवं धुमकुड़िया की व्यवस्था को आगे बढ़ाने का एक प्रयास है जहां ग्रामीण भाई-बहनें अपने बुजुर्ग एवं बच्चों के साथ बैठकर अपने गांव एवं समाज की बेहतरी के लिए सार्थक चर्चा कर रहे हैं। हर गुरुवार को स्थानीय भाषा की क्लास के बाद अखरा में बच्चों को पारंपरिक गीत एवं नृत्य सिखाने की जिम्मेवारी गांव के बुजुर्गों की होती है।

इसके साथ ही योग एवं शारीरिक कसरत को भी पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है। रविवार या छुट्टी के दिन बच्चों को फुटबॉल सिखलाया जाता है। पाठशाला के बच्चों में हो रहे सुधार का आकलन समय समय पर आयोजित प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा की जाती है जहां उनके बौद्धिक स्तर के साथ सांस्कृतिक ज्ञान को भी परख कर पुरस्कृत किया जाता है।


हमसे बात करते हुये श्री उराँव यह भी कहते हैं कि यह पाठशाला केवल आदिवासी बच्चों के लिये ही नहीं वरन सभी जाति-धर्मों के ग़रीब व वंचित बच्चों के लिए है क्योंकि गरीबों की कोई जाति नहीं होती। वे बताते हैं कि महीनें में इंटरमीडिएट, स्नातक व प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बच्चों को अलग से ट्रेनिंग देने हेतु वे उन्हें रांची भी बुलाते हैं।

परिषद द्वारा हर तीन महीने पर रात्रि पाठशाला के क्रियाकलापों की समीक्षा की जाती है, जहां शिक्षकों को अनुभवी एवं पारंगत प्रशिक्षकों द्वारा पठन-पाठन को आसान एवं रुचिकर बनाने के गुर सिखाये जाते हैं। चार पाठशाला को कंप्यूटर दिया गया है जहां प्रोजेक्टर के माध्यम से डिजिटल क्लासेज की शुरूआत की गयी है। यहां चल रहे पुस्तकालय को जरूरत की किताबों से समृद्ध भी किया जा रहा है।

शिक्षकों के प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी की भी है व्यवस्था
रात्रि पाठशाला के शिक्षक अपनी पढ़ाई के साथ अपने लिए रोजगार हासिल करें इसके लिए उनकी प्रतियोगिता की तैयारी अलग से की जाती है। युवाओं की ज्यादा रुचि फौज, केंद्रीय सुरक्षा बल एवं पुलिस की भर्ती में जाने को देखते हुए गांव के ही रिटायर फौजी एवं पुलिस अधिकारी उनकी तैयारी एवं प्रशिक्षण होने वाले शारीरिक- मानसिक परीक्षण के लिए गांव में ही कर रहे हैं।

कोरोनाकाल में स्कूल बंद के दौरान ‘रात्रि पाठशाला’ बच्चों के लिए साबित हुआ वरदान

कोरोनाकाल में लगभग दो वर्षों तक जब स्कूल और कॉलेज बंद रहे वहीं रात्रि पाठशाला ने ना सिर्फ ऑनलाइन क्लासेस से वंचित गरीब ग्रामीण बच्चों की पढ़ाई जारी रखी, बल्कि गांव की सामूहिकता की शक्ति, समृद्ध संस्कृति एवं भाषा को जिंदा रखने का प्रयास जारी रखा। इस नवीन प्रयोग को सफल बनाने में महिलाएं एवं युवा बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। जो कि झारखंड राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में एक आंदोलन का रूप ले रहा है।

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