जमशेदपुर के ‘जुबिली पार्क’ की सड़क के फिर से खुलने के पीछे की असली ‘कहानी’
जमशेदपुर: आपलोग सोच रहे होंगे कि जमशेदपुर के जुबिली पार्क की सड़क और गेट में ऐसा क्या है कि उसे स्वास्थ्य मंत्री को जाकर खोलना पड़ा? भारत के किसी भी पार्क के भीतर गाड़ियों की आवाजाही नहीं होती है तो जुबिली पार्क के भीतर की सड़क को खुलवाने की मांग क्यों थी?
दरअसल 80 वर्ष से भी पुरानी जुबिली पार्क के भीतर से गुजरनेवाली सार्वजनिक सड़क लोगों को साकची जल्दी पहुंचने का एक बेहतर विकल्प है जिसे कोरोना के नाम पर पिछले डेढ़ साल से बंद कर दिया गया था. टाटा स्टील के इस मनमाने रवैये को जिला प्रशासन की मौन सहमति थी. कोरोना गाईडलाईंस में ढील के साथ जमशेदपुर की सड़कों पर बढ़ता ट्रैफिक लोगों और ट्रैफिक पुलिस को परेशान कर रहा था लेकिन टाटा और प्रशासन ने मानो जिद कर ली थी. टाटा कंपनी ये भूल गई थी की वह लीजधारी है शहर या जुबिली पार्क की मालकिन नहीं.
BJP ने भी चुप्पी साध रखी थी क्योंकि सबको अपने भाई भतीजों को टाटा के यहां नौकरी जो दिलानी है या दिला रखी है. मीडिया से कुछ नाम जुबिली पार्क की सड़क खुलवाने को लेकर सोशल मीडिया से लेकर हर जगह मुखर हो रहे थे. वहां भी एक समय आया जब कुछ मीडिया जुबिली पार्क की गेट और सड़क बंद का समर्थन करते खबर बनाने लगे. ऐसे माहौल में ये वो नाम हैं जिन्होंने इस मुद्दे को उठाने के साथ साथ जीवंत रखा और अंतत: सरकार के जो मंत्री कल तक टाटा के इस कदम का विरोध करने की बजाए अप्रत्यक्ष रूप से साथ दे रहे थे खुद आकर गेट खोलने पहुंच गए.
पूरा माज़रा समझिये इस विस्तृत रिपोर्ट में
पिछले डेढ़ साल से जुबिली पार्क की सार्वजनिक सड़क और मेन गेट बंद थी. लोगों के लिए वैकल्पिक रास्ता मरीन ड्राईव और बागे जमशेद था जहां ट्रैफिक लोड बढ़ता जा रहा था. कोरोना का हवाला देकर टाटा स्टील और प्रशासन सड़क बंद कर रखी थी और छोटी से छोटी बात पर शोर मचाने वाली विपक्षी भाजपा चुप्पी साधे थी.
जब सारी चीजें खुल रही हैं तो न जाने जुबिली पार्क की सड़क से कैसे कोरोना का थर्ड वेभ आता समझ से परे था. लेकिन क्या किया जाए यही बहाना बनाए थे लोग. ऐसे में मीडिया लगातार जनता की आवाज़ बनी रही. वरिष्ठ पत्रकार छोटकू भैया, रंजीत, अन्नी अमृता, कवि, ब्रजेश,आनंद, सोशल संवाद, अभिषेक समेत अन्य कईयों ने लगातार जुबिली पार्क की बंद सड़क का मुद्दा उठाया. वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू ने पीआईएल की चेतावनी दे डाली. उधर नेताओं की चुप्पी के बीच विधायक सरयू राय ने आगाज़ करते हुए जुबिली पार्क का दौरा शुरू किया. इस दौरान छोटकू भैया ने एक ऐसी ऐसी तस्वीर जारी की जिससे पता चला कि पार्क के बीच की सर्वजनिक सड़क को खोदकर घास बिछाने की तैयारी शुरू हो गई थी. बस क्या था विरोध शुरू हुआ. सरयू राय ने चेतावनी दी और फिर आनन फानन में डीसी सूरज कुमार ने सड़क की पूर्व स्थिति बहाल करने के निर्देश दिए.
इसके बाद भी टाटा और प्रशासन ने सड़क नहीं खोली. इस बीच वरिष्ठ भाजपा नेता अभय सिंह ने आवाज़ उठानी शुरू की, हालांकि उनको अपनी पार्टी का समर्थन नहीं मिला. उल्टे पूर्व सीएम रघुवर दास औऱ उनके समर्थक पार्क की सड़क बंद रखने के समर्थन में आ गए. पर्यावरण के नाम पर कभी कुछ हवाला देकर ये लोग गेट और सड़क के बंद रखने का समर्थन करने लगे जो जनभावनाओं और जनसुविधा के खिलाफ था. इनकी मजबूरी थी कि पूर्व सीएम पहले ही अपने सुपुत्र को टाटा में नौकरी दिला चुके थे तो कैसे विरोध करते. यही हाल बाकियों का भी रहा.
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने न खुद बोला न किसी को बोलने दिया. लेकिन अभय सिंह ने पार्टी की जगह नागरिक सुविधा मंच की ओर से लगातार आवाज़ उठाई और आंदोलन का आगाज़ कर दिया. नागरिक सुविधा मंच का गठन खास तौर पर जुबिली पार्क की बंद सड़क को लेकर आंदोलन करने के लिए हुआ तो इसके जवाब में मंत्री बन्ना गुप्ता के पीए संजय ठाकुर ने सिविल सोसाईटी का गठन कर लिया जिसने पार्क की सार्वजनिक सड़क को बंद रखने का समर्थन कर प्रदर्शन शुरू करवा दिया. इधर नागरिक सुविधा मंच सड़क औऱ गेट खोलने की मांग को लेकर गतिविधियां करती रही तो जवाब में सिविल सोसाईटी बंद के समर्थन में उतर गई. पूर्व सांसद डॉ अजय कुमार ने भी देर से सही पर सड़क और गेट खोलने की मांग को लेकर जुबिली पार्क का दौरा शुरू किया.
अब आईए वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता अन्नी अमृता और अन्य मीडियकर्मियों की बात. टस में मस न होते हुए अन्नी, छोटकू भैया, रंजीत, आनंद, ब्रजेश और अन्य ने लगातार लोगों से बातचीत कर मुद्दा उठाए रखा. अन्नी अमृता ने ट्वीटर पर #JubiliParkkiSadakKholo अभियान भी चलाया जिसमें आम लोगों का भी भरपूर साथ मिला
इस बीच कई लोगों ने टाटा की चापलूसी में अन्नी को ट्रोल करने की भी कोशिश की लेकिन उसने हार नहीं मानी.छोटकू भैया, रंजीत, आनंद, ब्रजेश, कवि, सोशल संवाद और अन्य सभी अपने अपने माध्यमों से लिखते रहे.पूरे शहर में एक माहौल बनाया गया कि टाटा औऱ प्रशासन ने जनता के हित में सड़क बंद कर रखा है, लेकिन दोनों में से किसी ने आधिकारिक बयान न देकर विभिन्न संस्थाओं औऱ नेताओं को ढाल बनाया, इधर जनता दिक्कतों का सामना ट्रैफिक में करती रही. ट्रैफिक पुलिस के भी पसीने छूट रहे थे.अन्नी के ट्वीटर के कुछ स्क्रीनशॉट्स देखिए कैसे तीखे सवाल हैं—कैसे जमशेदपुर के सर्वांगीण विकास के लिए एयरपोर्ट न बनने, बड़े नए अस्पताल न बनने , एजुकेशन हब न बन पाने को लेकर टाटा को आड़े हाथ ले रही है.
इस बीच जुबिली पार्क की सड़क के दो वैकल्पिक मार्गों पर लगातार सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिसमें हंगामे हुए. टाटा और प्रशासन ने जनता को मरीन ड्राईव की सड़क पर चलने को मजबूर किया जो दरअसल भारी वाहनों के लिए बनाई गई है ताकि वे शहर में प्रवेश किए बगैर बाहर से बाहर एनएच पर निकल जाएं.सोनारी, कदमा औऱ आस-पास की सैकड़ों बस्तियों के वासी मरीन ड्राईव की सड़क से चलने को मजबूर थे जहां रोज़ दुर्घटनाएं आम बात है. बचा खुचा दबाव दूसरे वैकल्पिक रास्ते पर पड़ने लगा जिसे बागे जमशेद से सटा स्ट्रेट माईल कहते हैं. ये तब हो रहा था जब सभी कक्षाएं खुली नहीं थी, कल्पना की जा सकती थी कि जुबिली पार्क के चारों तरफ बड़ी संख्या में मौजूद स्कूल कॉलेज पूरी तरह सभी कक्षाओं के लिए खुल जाएं तो क्या आलम होगा?
इसी बीच रविवार की सुबह 26 सितंबर को बागे जमशेद वाले रास्ते पर एक दुर्घटना हुई जिसमें बाईक सवार की मौत हो गई. इसे भी मीडिया में प्रमुख जगह मिली औऱ ये मुद्दा औऱ गर्माने लगा. व्यापक जन आक्रोश औऱ आगामी राजनीतिक लाभ नफा नुकसान के डर के मद्देनज़र मंत्री बन्ना गुप्ता खुद गेट का ताला खोलने पहुंच गए.जनता की औऱ मीडिया की जीत हुई. हालांकि ये कार्यक्रम जिस अफरातफरी में हुआ उस पर सरयू राय ने सवाल उठाए हैं. सवाल है कि अगर खोलना ही था तब कायदे से प्रशासन को कह देते कि खोल लीजिए नहीं तो दो तीन दिन में खोल लूंगा. लेकिन मंत्री जी क्रेडिट लेना चाहते थे. मगर यहां कोई बेवकूफ नहीं है. पब्लिक सब जानती है कि टाटा-प्रशासन-सरकार-विपक्ष के बीच क्या सेटिंग थी, कौन आवाज़ उठा रहा था औऱ कौन टाटा के चरणों में गिर गया था. सत्ता और विपक्ष का अद्भुत गठजोड़ था ये जुबिली पार्क प्रकरण जिसके दूरगामी नतीजे आगामी राजनीतिक परिदृश्य में नजर आए तो कोई आश्चर्य मत कीजिएगा.
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस सार्वजनिक सड़क को बंद रखने के पीछे टाटा स्टील की क्या मंशा हो सकती है. इसको समझिए. टाटा स्टील पहले ही प्लांट विस्तारीकरण को लेकर साकची के केरला समाजम स्कूल, ग्रेजुएट कॉलेज वगरैह को शिफ्ट कर वहां के आस-पास की सार्वजनिक सड़क को बंद कर चुकी है. प्लांट पहले से शहर के बीचोबीच है और अब शहर में ही इसका लगातार विस्तार हो रहा है जिस पर कोई नेता कुछ नहीं बोलता. सरकारें भी चुप हैं. ऐसे विस्तारीकरण से पर्यावरण औऱ लोगों पर क्या असर होगा ये कोई नहीं सोच रहा लेकिन पहले से हरे भरे जुबिली पार्क के पर्यावरण की चिंता के नाम पर सड़क को बंद कर दिया गया.
खुद पूर्व सीएम रघुवर दास टाटा के सुर में सुर मिलाने लगे. जाने टाटा ने कौन सी पट्टी उपायुक्त सूरज कुमार को पढ़ा दी कि वे सड़क बंद करवाने में साथ हो लिए. ऐसा नहीं कि टाटा स्टील ने पहली बार ये कोशिश की है, पहले भी पार्क के खुलने की टाईमिंग को बदलकर सड़क बंद करने की कोशिश हो चुकी है, जिसे कोरोना काल आने पर बल मिल गया औऱ पार्क की बंदी के नाम पर सार्वजनिक सड़क को बंद कर दिया गया. आशंका ये है कि टाटा अपने प्लांट विस्तारीकरण में इस जगह का प्रयोग कर सकती है. सवाल है कि टाटा लीज़ की शर्तों का इस तरह खुलेआम उल्लंघन जनता की कीमत पर होता रहा औऱ सत्ता विपक्ष आवाज उठाने की जगह एक हो गए?क्या कोई पूछेगा कि टाटा लीजधारी होते हुए मालिक क्यों बन बैठी है? कैसी मनमानी चल रही है?
अंत भला तो सब भला. लोग खुश हैं और मंत्री बन्ना गुप्ता ने देर से सही पर कदम बढ़ाया जिसके लिए सभी उनको धन्यवाद भी दे रहे हैं लेकिन मंत्री और सरकार से सवाल है कि क्रेडिट लेने का खेल करने की जगह क्या वह इस प्रकरण पर एक सार्वजनिक सड़क को बंद करने को लेकर टाटा और प्रशासन से सवाल जवाब करेगी?सरकार सवाल करे या न करे पर इस प्रकरण में कुछ नाम जो उभर कर आए सलाम है.इनकी बदौलत ये साबित हुआ कि जमशेदपुर में भी भारत का ही कानून चलेगा किसी की जमींदारी नहीं.